‘ कुल ‘ से वस्तुत: परिवार , समाज का अर्थ नहीं है।
आगम शास्त्र के अनुसार ‘ कुल ‘ का अर्थ है — ३६ तत्वों का समूह। ३६ तत्वों का सम्यक् ज्ञान देनेवाली शक्ति को ‘ कुल – देवी ‘ कहते हैं।
‘ कुल ‘ आगम शास्त्र का एक महत्वपूर्ण शब्द है।
भारत के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न भिन्न कुल – देवियों का प्रचलन है, जिससे पूरे समाज को क्रमशः स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर की आध्यात्मिकी का अनुभव होता है।
दुर्गा, दश महाविद्या , गायत्री आदि —पूरे भारत के लिए ‘ कुल – देवियां ‘ हैं। यदि किसी को आज स्थानीय कुल – देवी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, तो वह इनसे ही लाभ उठा सकता है।
कुल – देवी को ही दुर्गा, नारायणी आदि समझकर सप्तशती की स्तुतियों से स्तुति की जा सकती है। एक दृष्टि- कोण से यही सर्वोत्तम है क्योंकि सप्तशती आदि स्तुतियां सिद्ध स्तुतियां हैं । इनसे ही आज के समय में लाभ उठाया जाना चाहिए।
फिर श्री कुल – देव्यै नमः कहकर अज्ञात कुल – देवी का पूजन-अर्चन किया जा सकता है।
आज कल बतानेवाले भय पहले फैलाते हैं। सरल रूप में बताना नहीं चाहते। कुल – देवी के सम्बन्ध में भी यही बात है। कुल – देवियां , पितृ — सभी केवल श्रद्धा- भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं क्योंकि पूर्वजों ने उन्हें पहले प्रसन्न किया है। किसी प्रकार की विशेष अर्चना आदि को खोजने आदि की कोई आवश्यकता नहीं है। जो ऐसा बताते हैं, वे भयभीत करते हैं। आचरण को शुद्ध रखने से सबसे ज्यादा कुल – देवता – देवी, पितृ प्रसन्न होते हैं। कठिनाई यह है कि यह न तो कोई बताता है, न कोई सुनना चाहता है।
सनातन धर्म की विविधताओं के कारण भारत के विभिन्न हिस्सों में होलिका – पर्व मनाने के स्वरूपों में कुछ भेद दिखाई देते हैं।
कहीं भगवान् कृष्ण के ज्ञान से युक्त पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
कहीं शक्तिशाली नाम – साधना के आदि आचार्य श्री प्रह्लाद का स्मरण कर — विष्णु – पद श्रीनृसिंह की आराधना की जाती है।
श्रीकृष्ण द्वारा विषैले दुग्ध का पान करानेवाली माया-शक्ति- स्वरूपा पूतना के ज्वलन का स्मरण किया जाता है।
कुछ लोग महा- देव द्वारा कामदेव के दु: साहस के ज्वलन का स्मरण करते हैं।
कुछ लोग होलिका को एक विशेष रात्रि के रूप में देखते हैं और अनात्माकार वृत्तियों का लय करने का प्रयत्न करते हैं, जिससे आत्म – ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
संक्षेप में, उक्त सभी प्रकारों में ज्ञान- दायक ‘ अग्नि – जागरण ‘ की प्रधानता होती है।