शक्तिपीठ उत्पत्ति कथा उनके नाम एवं महात्म्य भाग ५
श्रीमद्देवीभागवत स्कंध ७ अध्याय ३०
संकलन – हिरेन त्रिवेदी,’क्षेत्रज्ञ’
छगलण्डे प्रचण्डा तु चण्डिकामरकण्टके।
सोमेश्वरे वरारोहा प्रभासे पुष्करावती॥७३
देवमाता सरस्वत्यां पारावारा तटे स्मृता।
महालये महाभागा पयोष्ण्यां पिङ्गलेश्वरी॥७४
वे देवी छगलण्डमें ‘प्रचण्डा’, अमरकण्टकमें | ‘चण्डिका’, सोमेश्वरमें ‘वरारोहा’, प्रभासक्षेत्रमें | ‘पुष्करावती’, सरस्वतीतीर्थमें ‘देवमाता’, समुद्रतटपर ‘पारावारा’, महालयमें ‘महाभागा’ और पयोष्णीमें ‘पिंगलेश्वरी’ नामसे प्रसिद्ध हुईं ।। ७३-७४ ॥
सिंहिका कृतशौचे तु कार्तिके त्वतिशाङ्करी।।
उत्पलावर्तके लोला सुभद्रा शोणसङ्गमे ॥ ७५
माता सिद्धवने लक्ष्मीरनका भरताश्रमे।।
जालन्धरे विश्वमुखी तारा किष्किन्धपर्वते॥७६
देवदारुवने पुष्टिर्मेधा काश्मीरमण्डले।।
भीमा देवी हिमाद्रौ तु तुष्टिविश्वेश्वरे तथा॥७७
कपालमोचने शुद्धिर्माता कामावरोहणे।।
शङ्खोद्धारे धारा नाम धृतिः पिण्डारके तथा॥७८
वे कृतशौचक्षेत्रमें ‘सिंहिका’, कार्तिकक्षेत्रमें | ‘अतिशांकरी’, उत्पलावर्तकमें लोला’, सोनभद्रनदके संगमपर ‘सुभद्रा’, सिद्धवनमें माता ‘लक्ष्मी’, भरताश्रमतीर्थमें ‘अनंगा’, जालन्धरपर्वतपर ‘विश्वमुखी’, किष्किन्धापर्वतपर ‘तारा’, देवदारुवनमें पुष्टि’, काश्मीरमण्डलमें मेधा’, हिमाद्रिपर देवी ‘भीमा’, विश्वेश्वरक्षेत्रमें ‘तुष्टि’, कपालमोचनतीर्थमें ‘शुद्धि’, कामावरोहणतीर्थमें | ‘माता’, शंखोद्धारतीर्थमें ‘धारा’ और पिण्डारकतीर्थमें | ‘धृति’ नामसे विख्यात हैं। ७५-७८॥
कला तु चन्द्रभागायामच्छोदे शिवधारिणी।
वेणायाममृता नाम बदर्यामुर्वशी तथा॥७९
औषधिश्चोत्तरकुरौ कुशद्वीपे कुशोदका।
मन्मथा हेमकूटे तु कुमुदे सत्यवादिनी॥८०
अश्वत्थे वन्दनीया तु निधिर्वैश्रवणालये।
गायत्री वेदवदने पार्वती शिवसन्निधौ॥८१
देवलोके तथेन्द्राणी ब्रह्मास्येषु सरस्वती।
सूर्यबिम्बे प्रभा नाम मातृणां वैष्णवी मता॥ ८२
अरुन्धती सतीनां तु रामासु च तिलोत्तमा।
चित्ते ब्रह्मकला नाम शक्तिः सर्वशरीरिणाम्॥८३
चन्द्रभागानदीके तटपर ‘कला’, अच्छोदक्षेत्रमें | ‘शिवधारिणी’, वेणानदीके किनारे ‘अमृता’, बदरीवनमें ‘उर्वशी’, उत्तरकुरुप्रदेशमें ‘औषधि’, कुशद्वीपमें ‘कुशोदका’, हेमकूटपर्वतपर ‘मन्मथा’, कुमुदवनमें ‘सत्यवादिनी’, अश्वत्थतीर्थमें ‘वन्दनीया’, वैश्रवणालयक्षेत्रमें ‘निधि’, वेदवदनतीर्थमें ‘गायत्री’, भगवान् शिवके सांनिध्यमें ‘पार्वती’, देवलोकमें ‘इन्द्राणी’, ब्रह्माके मुखोंमें ‘सरस्वती’, सूर्यके बिम्बमें ‘प्रभा’ तथा मातृकाओंमें ‘वैष्णवी’ नामसे कही गयी हैं। | सतियोंमें ‘अरुन्धती’, अप्सराओंमें ‘तिलोत्तमा’ और सभी शरीरधारियोंके चित्तमें ‘ब्रह्मकला’ नामसे वे शक्ति प्रसिद्ध हैं ॥७९-८३॥
इमान्यष्ट शतानि स्युः पीठानि जनमेजय।
तत्संख्याकास्तदीशान्यो देव्यश्च परिकीर्तिताः॥८४
सतीदेव्यङ्गभूतानि पीठानि कथितानि च।
अन्यान्यपि प्रसङ्गेन यानि मुख्यानि भूतले॥८५
हे जनमेजय! ये एक सौ आठ सिद्धपीठ हैं और – उन स्थानोंपर उतनी ही परमेश्वरी देवियाँ कही गयी हैं। भगवती सतीके अंगोंसे सम्बन्धित पीठोंको मैंने बतला दिया; साथ ही इस पृथ्वीतलपर और भी अन्य जो प्रमुख स्थान हैं, प्रसंगवश उनका भी वर्णन कर – दिया॥ ८४-८५ ॥
यः स्मरेच्छृणुयाद्वापि नामाष्टशतमुत्तमम्।
सर्वपापविनिर्मुक्तो देवीलोकं परं व्रजेत्॥८६
जो मनुष्य इन एक सौ आठ उत्तम नामोंका | स्मरण अथवा श्रवण करता है, वह समस्त पापोंसे | मुक्त होकर भगवतीके परम धाममें पहुँच जाता है॥८६॥
एतेषु सर्वपीठेषु गच्छेद्यात्राविधानतः ।
सन्तर्पयेच्च पित्रादीञ्छ्राद्धादीनि विधाय च॥८७
कुर्याच्च महतीं पूजां भगवत्या विधानतः।
क्षमापयेज्जगद्धात्री जगदम्बां मुहुर्मुहुः॥८८
कृतकृत्यं स्वमात्मानं जानीयाजनमेजय।
भक्ष्यभोज्यादिभिः सर्वान्ब्राह्मणान्भोजयेत्ततः॥८९
विधानके अनुसार इन सभी तीर्थोंकी यात्रा करनी चाहिये और वहाँ श्राद्ध आदि सम्पन्न करके पितरोंको सन्तृप्त करना चाहिये। तदनन्तर विधिपूर्वक | भगवतीकी विशिष्ट पूजा करनी चाहिये और फिर जगद्धात्री जगदम्बासे [अपने अपराधके लिये] बारबार क्षमा याचना करनी चाहिये। हे जनमेजय! ऐसा करके अपने आपको कृतकृत्य समझना चाहिये। हे राजन्! तदनन्तर भक्ष्य और भोज्य आदि पदार्थ सभी ब्राह्मणों, सुवासिनी स्त्रियों, कुमारिकाओं तथा बटुओं – आदिको खिलाने चाहिये ॥ ८७-८९॥
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