जगज्जननी भट्टारिका महात्रिपुरसुन्दरी का ध्यान श्लोक , जो श्रीदत्तात्रेय महागुरु के मुखारविन्द से प्रस्फुटित हुआ है । यह ध्यान श्लोक अनेक आगमिक रहस्यों से पूर्ण है ।
अरुणां करुणातरंग्ड़िताक्षीं
धृतपाशांकुशबाणचापहस्ताम्।
अणिमादिभिरावृतां मयूखै-
रहमित्येव विभावये भवानीम्।।
अर्थात् मैं अणिमा आदि सिद्धिमयी किरणों से आवृत भवानी का ध्यान करता हूँ। उनके शरीर का रंग लाल है, नेत्रों में करुणा लहरा रही है तथा हाथों में पाश, अंकुश, बाण और धनुष शोभा पाते हैं ।
अरुण – लाल रंग
मयूख – किरण , चरण की कान्ति
अणिमादि- अष्ट सिद्धियां
करुणा – दया
तरंगित – लहरदार, उन्मेष
अक्ष – आँख , मातृका ‘अ’ से लेकर ‘क्ष’ तक ज्ञान शक्ति।
पाश, अंकुश, बाण और धनुष
श्रीललिताम्बा के षोडशी रूप का वर्णन है।
शाम्भवी शुक्लरूपा च #श्रीविद्या_रक्तरूपगा।
श्यामला श्यामरूपाख्या. एताश्चगुणशक्तय:।। श्रीविद्या ललिताम्बा का शरीर रूप #अरुणाभ अर्थात् लाल रंग – रक्त रूपगा है और लाक्षा के रंग जैसा है । तुलना करें। कादि मत में कहा गया :
#त्वत्देहोत्थिततेजोभि: किरणैरणिमादिभि:।
आदृतां त्वां महति भावयेस्त्वत्समो भवेदिति।।
हे देवि! तुम्हारी देह से प्रष्फुटित तेजमय किरणों , समस्त अष्ट सिद्धियों का जो रूप है, भावना द्वारा भक्त तुम्हारे समान ही हो जाता है।
अक्ष:– मातृका , जो श्रीदेवी के दोनों नेत्र हैं। मीनाक्षी हैं।
#आदिमुखा कादिकरा टादिपदा पादिपार्श्वयुड्मध्या।
यादि हृदया संविद्रूपा सरस्वती जयति ।।( महामहेश्वर अभिनवगुप्त)
स्वर वर्ण मुख, कवर्ग हाथ, टवर्ग पैर, पवर्ग जंघा, यवर्ग हृदय ऐसी संवित रूप वाली सरस्वती की जय हो ।संवित् – 365 दिनमान से अतीत अब श्रीभगवद्पादाचार्य शंकराचार्य महाराज सौन्दर्यलहरी में कह रहे हैं:
स्वदेहोद्भूताभिर्घृणिभिरणिमाद्याभिरभित:
निषेव्ये नित्ये त्वामहमिति सदा भावयति य:।
किमाश्चर्यं तस्यत्रिनयनसमृद्धिं तृणयत:
महासंवर्ताग्निर्विरचयति नीराजनविधिम्।।( सौन्दर्य लहरी 30)
अर्थात् हे नित्ये! आश्पके शरीरावयवभूत चरणों से उत्पन्न रश्मियों एवं अणिमादि अष्टसिद्धियों से घिरी हुई आपका जो साधक “ अहं” इस अभेद भावना से ध्यान करता है, सूर्य चन्द्राग्नि रूप समृद्धि वाले अथवा इड़ा, पिंग्ड़ला, सुषुम्ना के उपायों से प्राप्त होने वाले, सदाशिव की समृद्धि को तुच्छ समझने वाले उस साधक की आरती प्रलयकालीन संवर्ताग्नि भी करे तो इसमें कौन सा आश्चर्य है ।
भाव यह है कि “ अहं” परामर्श दृढ़ होने पर तादात्म्य सिद्ध जब हो जाता है ऐसे साधक की आरती प्रलयाग्नि भी उतारती है, इसमें आश्चर्य की क्या बात है!
श्रीललिताम्बा सोलह नित्याओं के रूप में प्रत्येक मास की प्रतिपदा से पूर्णिमा और अमावस्या तक आराधित होती हैं । ( खड्गमाला और नित्याएं )
मयूख: चरणों से निकलने वाली किरणें
पृथ्वी से 56, जल से 52, अग्नि से 62, वायु से 54, आकाश से 72, और मन से 67 मयूखों की संख्या है।कुल 363 मयूख ।
अग्नि में 108, सूर्य में 116 और चंद्र में 136 कलाएं हैं – कुल 360 कलाएं – एक सम्पूर्ण वृत्त गोल ।
इन सबके ऊपर श्रीदेवी के दिव्य चरण हैं ।
इसका संदर्भ श्रीभाष्कर राय मखीन ने वरिवस्या रहस्य के ध्यान और न्यास के प्रसंग मे किया है । ध्यान- अरुणा करुणा—-, छंद- पंक्ति आदि अपने भाष्य में लिखा है ।(श्लोक 161)।
यह ध्यान श्लोक अति रहस्यमय है और गहन है ।