Hradayay (Atm Ras) Namah (Naman)
Sirse(thoughts) Swaha(Burn)
Shikhayei(Atm Jyoti) Vashat(control and Channelise)
Kavachay (Jyoti Kavach) Hum(Tejas)
Netratrayay (Vision of Essence) Vaushat(Darshan)
Astray(Fire Arrow) Phat
Hradayay (Atm Ras) Namah (Naman)
Sirse(thoughts) Swaha(Burn)
Shikhayei(Atm Jyoti) Vashat(control and Channelise)
Kavachay (Jyoti Kavach) Hum(Tejas)
Netratrayay (Vision of Essence) Vaushat(Darshan)
Astray(Fire Arrow) Phat
।।श्री गणपति अथर्व विज्ञानं ।।
गणेशजी के उत्सव में 9 दिन के त्यौहार और 10 वे दिन मूर्ति का विसर्जन करते है
परन्तु इस सब में हम यह सीखना भूल गए आखिर इसका बोध क्या है क्यों हम एक परम्परा को सालो से मानते आये है पर कभी यह नहीं सोचा आखिर जो परम्परा बनी है उसका रहस्य क्या है?
कौन है गणेश?
वेदों में गणेश का कोई भी आकार नहीं बताया नहीं उपनिषद यह केहता है
पुराणों में इसका उल्लेख है एक कथा के रूप में
कथा थी
अब इसके पीछे के विज्ञानं की खोज करते है
क्यों शिव ने शक्ति के पुत्र का मस्तक काटा?
क्या कोई पिता अपने पुत्र को पहचान न पाया?
अगर एक हाथी का मस्तक धड से लग सकता है तो फिर वो ही मस्तक दुबारा क्यों नहीं लगाया?
ऐसे सवाल काफी है जिसके जवाब नहीं मिलते फिर ये एक कथा को सत्य मान लेते है
जड दिमाग कभी किसीका भला नहीं कर सकता
जब पार्वती ने अपने मेल से आकार दिया तो प्रकृति का प्रधान्य करते हुए 3 दोष उसमे चले गए
जो अपने भीतर की शक्ति को रोक नहीं पाए
इसमें एक बुद्धि और ज्ञानी के पास शक्ति हो तो वो उसका उपयोग कहा कैसे और किसके सामने करना है वो जान पाता है
यह एक दंत कथा है
शिव वो आत्मा है ज्ञान है जब की प्रकृति शक्ति यह दोनों के मिलन से ही सृष्टी का कल्याण सम्भव है
जब गणेश का पहली बार निर्माण हुआ तो वो असंतुलित था क्यूंकि सिर्फ शक्ति और प्रकृति प्रधान थे
इस हेतु जो बुद्धि स्थिर नहीं उसे काट देनी चाहिए
बुद्धि को तिन गुणों ने दूषित किया है
इस हेतु त्रिशूल से यानि ये तिन गुणों को शमन करने वाला शस्त्र
वहा हाथी जिसे पृथ्वी पर सबसे ज्ञानी और शांत प्रकृति का प्राणी है उसका मस्तक लगाया
जिसे ज्ञान और शक्ति एक हुए
थोडा गहन अभ्यास ज़रूरी है
पार्वती ने अपने मेल से एक पुतले की रचना की
पार्वती वो शक्ति है प्रकृति है
मेल वो और कोई नहीं प्रकृति तिन गुण है
अब शिव और शक्ति दोनों का समन्वय हो तो ही वो
कार्य में आ सकता है बिना तत्व शुद्ध किये प्रकृति
शक्ति का वहन ठीक से नहीं कर पायेगी वो दिशा विहीन रहेगी
जैसे ट्रांसफ़ॉर्मर से आती बिजली को अगर बिच में जम्पर या अवरोधक न मिले तो वो शक्ति व्यर्थ हो जाएगी
प्रकृति ने अपने मेल से एक प्रोग्राम का निर्माण तो किया किन्तु वायरस और zip फाइल ज्यादा थी जिसकी वजह से आगे जाके प्रोगाम संतुलित न रह्ता और वो विनाश और भय का कारण बनता
अब कहानी यह आई की वो शक्ति किसी के ताबे नहीं हुई
क्यूंकि शक्ति का एक दुरूपयोग यही है प्रदर्शन करना चाहे फिर सामने कोई भी क्यों न हो
हमने यह सुना है और पढ़ा है की शक्ति के पुत्र ने न विष्णु को छोड़ा न ब्रह्मा को न देवता को
इस पराक्रम से यह पता चला की शक्ति का सिर्फ एक ही दिशा में वहन होना भयानक हो सकता है
अब शिव यानि स्थिरता
जब तक इसमें स्थिरता न आती तो वो शिवांश कैसे कहलाते वो सिर्फ गौरी पुत्र ही रेहते
शिव जिसे आध्यात्म में शुद्ध चैतन्य कहते है
उसके स्पर्श से तिन अशुद्धि का समन होता है
जिसे त्रिशूल से वो तिन गुणों को काटा
यानि मस्तक काटा वहा शक्ति की जगह वहा ज्ञान
जिसकी उपमा हाथी से दी गयी है हाथी इसी लिए की वो सब से स्थिर शांत और ज्ञानी प्राणी है
जहा शरीर शक्ति का और बुद्धि शिव की हुई तो यह शिव शक्ति का मेलाप हुआ
जीवन में हमे शक्ति भी चाहिए और ज्ञान भी
इस हेतु यह विनायक की रचना की गयी
जीवन में दोनों साधना में पूर्ण होना है
जिसे नाद और बिन्द भी केहते है
गणपति तंत्र में आकार का प्राधान्य नाड़ी तंत्र के उपर है
प्राणायाम
प्राणों को गहराई से लेना है जहा मूलाधार चक्र है
मस्तिष्क के अग्र भाग से प्राण चेतना को सुशुप्त कुंडलिनी उर्जा तक ले जाना है
उसमे बुद्धि का प्रयोजन अनिवार्य है
यह तक अथर्व का वहन शुद्धि बिना हुआ तो शरीर पर भारी मार पड़ेगा वो उत्थान की जगह पतन का कारण होता है
इसी लिए प्रथम द्वार पर गणेश को बिठाया है की विनय पूर्वक अपने काया में धर्म को समजे
अपने प्राणों के माध्यम से अपनी चेतना को मूलाधार से वापस सहस्त्र चक्र की और ले जाए
इसमें गणपति के तिन 3 चित्र या स्वरूप है जिसमे एक और दाई सूंड जिससे सूर्य स्वर भेदिका
सूर्य मार्ग से जाकर ज्ञान एवम बुद्धि मी तेजस्विता प्राप्त करना
और चन्द्र मार्ग से माया और सिद्धियों का मार्ग
तीसरा मार्ग प्राणों को उर्ध्वरेता कर सीधा ब्रह्म में लीन हो जाना
तीसरा मार्ग गुरुग्म्य है बिना गुरु आदेश एवं अथर्व की कृपा से खुलता है
गणपति का बिज है गं
गं का प्राधान्य विशुद्ध से अनाहत और अनाहत से मस्तिस्क की और जाता है
ग कारो पूर्व रूपं यह विशुद्ध बिज हुआ
अ कारो मध्यम रूपम यह अनाहत बिज है
अनुस्वार बिंदु रुतर रूपम
म और न बिंदु प्राधान्य है जिसका तार आज्ञा चक्र और सहस्त्रार से है
यह बिज को अथर्व शक्ति से सहिता संधि करनी है
फिर वो चेतना में लीं हो जाना वही से गणपति के तत्व स्वरूप की और बढ़ा जाता है
यह बिज शक्ति और शिव का मिलन है
यहा शरीर रूप प्रकृति का
एवम आत्मा रूपी पुरुष का त्याग करके ब्रह्म की और प्रयाण करना है
जिसे परम आत्म तत्व कहते है
एवं ध्यायति यो नित्यं संयोगी योगी ना वर
योगी जन वही तत्व रूप परमात्मा का ध्यान करते है जो प्रकृति और पुरुष से परे है
जो सूद्ध चैतन्य व्यापक निशब्द निर्गुण सत्ता है
वो ही हमारा अंतिम मुकाम है
अष्टांग योग से मन और शरीर को सिद्ध और विवेकी करो फिर प्राणों के माध्यम से भीतर की चेतना स्थिर करो
फिर वो ही चेतना से प्रकृति से जुड़ जाओ प्रकृति आधीन होना शुरू हो जाएगी
साधना में विघ्न ज़रूर आयेंगे
कभी मन से कभी दुनिया से
साथ में पाश और अंकुश रखना कहा गति पर अंकुश रखना है और कहा बुद्धि को लगाम देनी है वो भी सीखना है
अवलोकन इस समष्टि को मात्र एक रंगमंच समजना
और उसको अपनी स्थिर बुद्धि से अवलोकन करना वो ही गणेश की महाकाय सिखाती है
बिना गणेश तत्व को साधे कोई भी साधना फलीभूत नहीं होती उसका प्रयोजन यही बुद्धि पर जित प्राप्त करना विवेक पर जित प्राप्त करना
विवेक वो प्रथम चरण है
उपनिषद और उसका शीर्ष जिसे अथर्व शीर्ष
अथर्व वो ब्रह्म की प्राण चैतन्य और सम्यक शक्ति है
जो ब्रह्म को अनेक कला में व्याप्त करती है उसका विज्ञानं वो अथर्व विज्ञानं है
हर एक देवता का अथर्व अलग है किन्तु सब देवता
में मूल शक्ति एक ही रहेगी
जिसे सर्व व्याप्त ब्रह्म केहते है
वो ही ब्रह्म को पाने से मुक्ति का मार्ग खुलता है
मंगलं भगवान ढुंढी मंगलं मूषकध्वजः।
मंगलं पार्वती तनयः मंगलाय तनो गणः।।
गणेशवंदना साथे जय अंबे जय गुरुदेव।