नव नाथ

ॐ तत्सत्

नव नाथ

महादेव शिव कहते हैं .. हे देवि!
अब मैं अपने समानस्वरुप वाले अविनाशी उन नव नाथों का वर्णन करता हूँ जो विद्यावतारों की सीढ़ियाँ हैं अतः वे पूज्य है।

ये नव नाथ मेरे ही प्रकाश, विमर्श और आनन्द के अतिरिक्त और भी रूपों में विद्यमान हैं।
ये दिव्य रूप हैं। इन्हें दिव्यौघ कहते हैं। इनके नाम हैं —
१.प्रकाशानन्द, २. विमर्शानन्द और ३. आनन्दानन्द ।

इन तीनों से तीन सिद्धौघों की उत्पत्ति हुई।
१. श्रीज्ञानानन्द, २. श्रीसत्यानन्द और ३. श्रीपूर्णानन्द ।

तीनों दिव्यौघ मेरे निकट रहते हैं । सिद्धौघ मेरे निकट और भूमि पर विचरण करते हैं ।
उनसे उत्पन्न तीन मानवौघ पृथ्वी पर ही रहते हैं।
ये तीन मानवौघ है – स्वभावानन्द, प्रतिभानन्द और सुभगानन्द ।

ये तीनों मानवौघ पृथ्वी पर विचरण करते हुए भी मेरे स्वरुप हैं।

इन नवों के साथ ‘नाथ’ शब्द लगाने से इन्हें —
१. प्रकाशानन्द नाथ, २. विमर्शानन्द नाथ, ३. आनन्दानन्द नाथ, ४. श्रीज्ञानानन्द नाथ, ५. श्रीसत्यानन्द नाथ, ६. श्रीपूर्णानन्द नाथ, ७. स्वभावानन्द नाथ, ८. प्रतिभानन्द नाथ, ९. सुभगानन्द नाथ कहते हैं।

इन्ही नवनाथों के द्वारा संसार में श्रीविद्या के कादि मत सहित अन्य मतों का निर्माण और प्रचार सतयुग में होता है जो अन्य युगों में भी विद्यमान रहता है।

ये सभी दो नयन एवं दो भुजा वाले श्रीविद्या के साथ उन्ही के रूप में रहते हैं। सदा प्रसन्नमुख मुस्कान वाले, एक हाथ मे वर मुद्रा और दूसरे में अभय मुद्रा युक्त रहते हैं।
इन सबकी अपने अपने मंडलों में पूजा होती है । किन्तु श्रीविद्या ललिता की आज्ञा से इनकी पूजा देवीरूपा मान कर श्रीचक्र या श्रीयन्त्र में ही होती है।

नवनाथों के प्रतिनिधि रूप स्वशरीर में प्रतिष्ठित होने वाले अंग हैं –
दिव्यौघ हेतु दो कान और एक मुख,
सिद्धौघ के लिए दो आँख और एक लिङ्ग ,
मानवौघ के लिए दो नासाछिद्र और एक मलद्वार।

शरीर के ये नौ अंग नव नाथों का प्रतिनिधित्व करते हैं । ये नौ गुरु या नाथ जाग्रतावस्था में उपदेश देते रहते हैं।
……………..
जय अंबे जय गुरुदेव।🙏🏻

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